शास्त्रों एवं पुराणों पर आधारित है आधुनिक विज्ञान : स्वामी प्रखर जी महाराज
कोरोना शमन एवं भारत विश्व गुरु बनाने को लक्षचण्डी यज्ञ में दी गई आहुतियां
ईश्वरीय सत्ता पर आधारित है भौतिकवाद : माधवन वेंकटरमन
शास्त्रों एवं पुराणों पर आधारित है आधुनिक विज्ञान : स्वामी प्रखर जी महाराज
वाराणसी। भारत देश की संस्कृति विश्वभर में प्रसिद्ध है देश की संस्कृति युगों से अपरिवर्तनीय होने का मुख्य कारण संतों की तपस्या है जहां युग युगांतर से चली आ रही परंपरा वेदों और शास्त्रों पर टिकी हुई है वहीं इस परंपरा को आगे बढ़ाने में अनेकों संतों का योगदान रहा है। इसी क्रम में मोक्षदायिनी काशी नगरी में महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रखर जी महाराज द्वारा निरंतर 51 दिवसीय विराट श्री लक्षचण्डी महायज्ञ के 19 वें दिन संकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर परिसर में महायज्ञ की आहुतियां छोड़ी गयीं साथ ही सांय 3 बजे से पोखरा में जे टी पर प्रतिदिन किये जाने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला में फिजिक्स कंवेंशन का आयोजन किया गया। शनिवार को श्री लक्षचण्डी महायज्ञ के तहत प्रातः कालीन बेला में काशी के शंकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर के अग्र भाग में स्थित पोखरा में जे टी पर 500 ब्राह्मणों द्वारा एक स्वर में दुर्गाशप्तशती पाठ का वाचन किया गया उसके बाद सभी विद्वानों ने यज्ञशाला में दुर्गाशप्तशती के पाठ किए वहीं यज्ञ शाला के समीप स्थित दुर्गामंदिर में पुजारी सुभाष तिवारी द्वारा देवी का अर्चन किया गया। सांय 3 बजे से पोखरा में स्थित जे टी पर निरंतर अलग अलग आयोजनों के क्रम में शनिवार को विद्वत नगरी काशी सहित अन्य जगहों के विद्वानों की उपस्थिति में फिजिक्स कंवेंशन का आयोजन किया गया जिसका मुख्य विषय भौतिक विज्ञान के माध्यम से ईश्वर शक्ति की सिद्धि रहा जिसमें आये विद्वानों का शशिभूषण त्रिपाठी,चंदन सिंह,आचार्य गौरव शास्त्री,सुनील नेमानी,सुषमा अग्रवाल,बिकास भावसिंघका,कृष्णकुमार खेमखा आदि ने शॉल ओढ़ाकर एवं पुष्पमाला पहनाकर स्वागत किया एवं मंच का संचालन डा. दिव्यचैतन्य ब्रह्मचारी जी महाराज ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री प्रखर जी महाराज ने अपने आशीर्वचनों के माध्यम से बताया कि आज के दौर में जितनी भी वैज्ञानिक गतिविधि हम देख रहे हैं उनका संबंध प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति से है आज हम अपने देश के इतिहास को भूलकर पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ते जा रहे हैं लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि जब कोई गणना बिना किसी यंत्र के की जाती थी उस समय भारत के महापुरुष बिना किसी कॉपी पेन के द्वारा बिना तत्काल किसी प्रश्न का जवाब दिया करते थे भारत हमेशा से विश्वगुरु रहा है आज के विकासशील देश हमारे धर्मग्रंथों को पढ़कर उनको समझकर नई नई खोजें कर रहे हैं और आज के आधुनिक लोग उन्हीं ग्रंथों को देखने में अपमानित महसूस करते हैं ।
बैंगलोर से आये प्रो0 माधवन बेंकटरमन जी ने अपने विषय की चर्चा करते हुए बताया कि परमात्मा ही परमसत्य है आधुनिक विज्ञान केवल इस विषय को सिद्ध करने में लगा हुआ है,ब्रम्हांड में अनेकों आकाशगंगाएं विभिन्न ग्रह एवं नक्षत्रों को ज्योतिष शास्त्र बताता है लेकिन जैसा कि हम सब लोग जानते हैं हर किसी वस्तु को बिना किसी इनपुट के नहीं चलाया जा सकता उसी प्रकार इतने ब्रह्माण्ड को भी एक शक्ति चलाती है जिसे ईश्वर कहते हैं बिना भगवान के इस पृथ्वी पर कुछ भी संभव नहीं है।उन्होंने बताया कि विज्ञान के अनुसार यदि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण त्वरण की गणना यदि जरा सा भी बदलें तो पृथ्वी पर जीवों की दिनचर्या पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन इस मात्रा को एक शक्ति सामंजस्य बनाये हुए है जिसको भगवान कहा जाता है अतः भगवान के बिना विज्ञान को नहीं जाना जा सकता। प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बताया कि प्राचीनकाल से ही वेदों द्वारा भगवान के विषय में उल्लेखनीय है तर्क के द्वारा भगवान की उपस्थिति नहीं दिखाई जा सकती। प्रो. आर.पी.मालिक ने जिसने सूरज चांद बनाया जिसने तारों को चमकाया …कविता के माध्यम से अपना उद्भाषण देते हुए कहा कि जब प्रयोग करते करते किसी निर्णय तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है तब एक ऐसी ऊर्जा को याद किया जाता है जिसे बोलते हैं ईश्वर आज की सभी स्पेस स्टेशन सहित अन्य वैज्ञानिक प्राचीन ग्रन्थों पर ही खोज कर आविष्कार कर रहे है। फिजिक्स कन्वेंशन को अग्रिम दिशा देने में प्रो. विजयनाथ मिश्र, प्रो. सुरेश चंद्र तिवारी, प्रो. डी. सी. अग्रवाल आदि ने अपने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये। इस अवसर पर डा. सज्जन प्रसाद तिवारी, दिनेश मिश्रा, दिशा पसारी, तनीषा अरोरा, अभिनव गर्ग, अनुराधा, अग्रवाल, अमित सहगल, परमेश्वर दत्त शुक्ल आदि उपस्थित रहे। देर शाम महाआरती में दर्जनों भक्त उपस्थित रहे।