ब्लड बैंक प्रभारी रहते कई अनियमितताओं के बाद एमएस अब हृदय विभाग मे फार्मेसी की शाखा खुलवा कर रहे मनमानी- डॉ ओम शंकर
अमृत फार्मेसी पर उठाए सवाल
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सरसुंदरलाल अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट और हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो ओमशंकर ने चिकित्सालय के एमएस प्रो के के गुप्ता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने 2016 की एक जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रो गुप्ता पर आईएमएस बीएचयू के ब्लड बैंक के प्रभारी के तौर पर घोर अनियमितता के आरोप लगाए हैं। साथ ही कहा है कि छह साल बाद अब वो हृदय रोग विभाग में एक फार्मेसी की शाखा खुलवा कर एक बार फिर से मनमानी पर उतारू हैं। प्रो ओमशंकर ने विश्वविद्यालय प्रशासन और आईएमएस बीएचयू प्रशासन से प्रो गुप्ता के पूर्व की जांच को संज्ञान लेते हुए तत्काल प्रभाव से पदच्युत करने की मांग की है। हालांकि इस मसले पर जब प्रो गुप्ता से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने सारे आरोपो को सिरे से खारिज कर दिया।प्रधानमंत्री से की गई थी तत्कालीन ब्लड बैंक प्रभारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग,
प्रो ओमशंकर ने 12 अप्रैल 2016 की एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया है कि रामजीत विश्वकर्मा नामक एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री मोदी को, वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक और तत्कालीन ब्लड बैंक इंचार्ज, प्रोफेसर के के गुप्ता के विरुद्ध ब्लड बैंक में फैले भ्रष्टाचार की जांच करवाने का निवेदन किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पत्र का संज्ञान लेते हुए तत्कालीन कुलपति को इन आरोपों की जांच करवाने के लिए अग्रेसित किया था जिस पर कुलपति ने जांच सिमिति गठित की जांच समिति ने जब प्रोफेसर के के गुप्ता, (उस समय के ब्लड बैंक इंचार्ज) से आईआईटी बीएचयू के छात्रों के ब्लड बैंक, बीएचयू को दिए दान से संबंधित (कलेक्शन और यूटिलाइजेशन) साक्ष्य प्रस्तुत करने को कहा, तो पहले उन्होंने इसका जवाब देने के लिए 3 हफ्ते का समय मांगा। फिर 3 हफ्ते बीत जाने के बाद भी समिति को इससे संबंधित कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए।
समय सीमा बीत जाने के बाद भी समिति के समक्ष 653 यूनिट ब्लड के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किेए तो समिति ने खुद ब्लड बैंक जाकर साक्ष्य जुटाने का निर्णय लिया। जांच समिति ने अपनी खोजबीन में पाया कि ब्लड बैंक एसएसएच, बीएचयू जिसके इंचार्ज वर्षों से गुप्ता जी थे, उस ब्लड बैंक के पास लाइसेंस तक नहीं थे। यहां तक कि 20 दिसंबर 2012 को प्राप्त लाइसेंस की मियाद बीत चुकी थी। इस तरह दिसंबर 2012 से 2016 तक बिना लाइसेंस के हीं एसएसएच में अवैध रूप से ब्लड बैंक चलता रहा,
समिति को यह भी पता चला कि ब्लड बैंक में दो और डॉक्टरों मसलन डॉ ए के वर्मा और डॉ गोपाल नाथ का नाम वहां के स्टाफ के तौर पर अंकित है। इसकी सत्यता जानने के लिए समिति ने डॉ ए के वर्मा को बुलाया तो उन्होंने कहा कि वो न तो ब्लड बैंक में काम करते हैं और न हीं उसकी अनुमति से उनका नाम गुप्ता जी द्वारा लिखा गया है। यानी इनके नाम का दुरुपयोग कर फ्रॉड किया जा रहा था,
जांच समिति ने यह भी पाया कि तत्कालीन ब्लड बैंक प्रभारी प्रो गुप्ता ने ब्लड बैंक को संचालित करने के लिए समय-समय पर सरकार/सक्षम अधिकारियों द्वारा जारी किए जाने वाले आदेशों की भी खुले आम अवहेलना की गई। हीमोफीलिया तथा अन्य जन्मजात खून की कमी करने वाली बीमारियों के मरीजों को भी सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार फ्री में ब्लड/ब्लड कंपोनेंट नहीं दिए गए,
समिति ने तत्कालीन ब्लड बैंक प्रभारी प्रो गुप्ता से वो शासनादेश मांगा जिसके तहत उनको ब्लड बैंक इंचार्च बनाया गया था, तो वो वह आदेश दिखाने में भी विफल रहे। बताया जाता है कि प्रो गुप्ता क ब्लड बैंक प्रभारी नियुक्त किया हीं नहीं गया था,
जांच समिति को ब्लड बैंक के रजिस्टरों की जांच के बाद यह भी पता चला कि आईआईटी बीएचयू के छात्रों द्वारा दान दिए गए 653 यूनिट ब्लड के बारे में उनके पास कोई सूचना ब्लड बैंक में नहीं है।
जांच समिति ने यह भी पाया कि सरकारी मानकों के हिसाब से ब्लड बैंक का संचालन पैथोलॉजी विभाग द्वारा किया जाना चाहिए, जबकि गुप्ता जी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक हैं और उनके पास पैथोलॉजी की कोई डिग्री भी नहीं है।
प्रो गुप्ता का ब्लड बैंक इंचार्च बनना सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का उलंघन है, इसलिए प्रो गुप्ता के विरुद्ध उचित करवाई की जाए जिससे शताब्दी वर्ष में एसएसएच, आईएमएस बीएचयू की गरिमा बची रहे। इसी समिति के सुझावों के आधार पर दंड स्वरूप प्रो गुप्ता को ब्लड बैंक इंचार्च के पद से हटाया गया था।
प्रो गुप्ता द्वारा जांच समिति को अपेक्षित साक्ष्य उपलब्ध न करवाने को समिति ने उनके स्तर से सच को जान बूझकर छुपाने की कोशिश माना और इसके लिए उनको कदाचार का दोषी भी ठहराया।