‘तिमिर में ज्योति जैसे’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण
कोरोना काल की त्रासदी पर लिखी कविताओं की संग्रह पुस्तक “तिमिर में ज्योति जैसे’ का हुआ लोकार्पण
43 कवियों की कविताओं का है संग्रह
वाराणसी। वरिष्ठ आलोचक प्रो अरुण होता के संपादन में कोरोना काल के बीच लिखी गई कविताओं के संचयन “तिमिर में ज्योति जैसे’ को बनारस में ख्यात न्यूरो चिकित्सक प्रो विजयनाथ मिश्र, प्रसिद्ध जीव विज्ञानी प्रो ज्ञानेश्वर चौबे व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने जारी किया। 43 कवियों की कविताओं का यह संचयन सेतु प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित किया है जिसमें कोरोना काल की त्रासदी पर लिखी गई अनेक यादगार कविताएं हैं। इस अवसर पर संबोधित करते हुए वरिष्ठ लेखक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि कविता मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता का विकास करती है और इसके माध्यम से मनोरोग के मरीजों का इलाज भी संभव है।कहा कि कविता केवल आनंद का विषय नहीं होती।वह मनुष्य के लिए अवसाद से मुक्ति का माध्यम भी है ।पुस्तक में संकलित कोरोजीवी कविताओं की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि कविता समराग से सामूहिक राग की यात्रा है।इस अवसर पर उन्होंने प्रख्यात मनोचिकित्सक नार्मन रोसेन्थल के बहाने कहा कि कविता आत्मा की वैक्सीन है। इस अवसर पर बोलते हुए बीएचयू के चिकित्सक प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कहा कि कोरोना का प्रमुख कारण जिस चमगादड़ को माना गया है वह अपने गले में सैकड़ों वायरस को लेकर घूमता रहता है लेकिन उसे कुछ नहीं होता।वैज्ञानिक पता लगा रहे हैंकि ऐसा किस प्रोटीन संरचना के कारण होता है जिससे इस वायरस की काट मिल सके।उम्मीद जताई कि यहाँ संकलित कविताएं हमारे मष्तिष्क में संभव है कोई प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकें।आगे लकवा महामारी पर बताते यह भी कहा कि लकवा का मरीज जहां बोल नहीं सकता वहीं वह इन कविताओं को गा सकता है।कहा कि यह गीत एक कविता ही है जो लकवा के मरीजों के लिए गाया जाता है-काला मटरा पियर पिसान/जाके खाये गोड नसान। प्रसिद्ध जीव विज्ञानी प्रो ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि वायरस की काट चिकित्सा के साथ साहित्य व कविता को भी बनाया जा सकता है क्योंकि यह प्रमाणित है कि साहित्य,संगीत व कला का मष्तिष्क का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।कोरोना की त्रासदी पर लिखी कविताओं के बारे में कहा कि ये कविताएं आने वाले दिनों में हमारे समय का एक दस्तावेज बनेगीं। इस अवसर पर डॉ आनंद, अरविंद कुमार उपाध्याय, उमेश गोस्वामी की उपस्थिति महत्व पूर्ण रही। कोरोना को देखते हुए कार्यक्रम को छोटा व अनौपचारिक रखा गया।