जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, गरीब कैदियों की दयनीय स्थिति, जिम्मेदार कौन, ?
जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, गरीब कैदियों की दयनीय स्थिति- जिम्मेदार कौन ? – राजेश गुप्ता एडवोकेट
वैसे तो जेलों को सुधार गृह कहा जाता है कि यहाँ निरूद्ध बंदियों को मानसिक और शारीरक तौर पर समाजिक प्राणी बनाने का जेल प्रशासन कार्य करता है। मगर जब हम वास्तविकता जानने के लिए जेल की ओर बडे तो हमने जेल के सिपाहियों से लगायत, जेल मुलाकातियों से भी जेल के विषय में चर्चा किया तथा जेल के कुछ बंदी जब कारागार से रिहा हुए तो उनसे भी जेल के अन्दर कैसे संचालित होता है कैदियों का जीवन तथा किस प्रकार लगाम लगाते हैं कारागार प्रशासन कैदियों पर यह हमनें जाना।
प्रायः यह सत्य है कि जेल में 60 फीसदी ऐसे बंदी निरुद्ध है जो छोटे छोटे केसों में या तो पकडे गये है या तो दोषसिद्धि है। इसका कारण यह है कि यह 60 फीसदी बहुत ही गरीब होते है जिनका कोई पैरोकार नहीं होता है और न ही इतना रुपया पैसा होता है कि वह एक अच्छा वकील नियुक्त करके मुकदमों का परीक्षण करवा सके।
जेल में जो कैदी पैसा नहीं खर्च कर पाटा उससे कमर तोड़ श्रम करवाया जाता है जेल में बन्दी रक्षकों की कृपा से आज भी गांजा शराब गुटका बीड़ी आदि तमाम नशे के सामान मूल्य से चार गुना अधिक मूल्य पर उपलब्ध हो रहे है । जेल बंदियों की माने तो हर नशा जेल में पैसा खर्च करने पर मिल सकता है । जो बन्दी पैसा खर्च करता है वह तो यहाँ की सुविधाओ का पूरा लाभ उठाता है जो पैसा खर्च करने की क्षमता नहीं रखता है उससे कमर तोड़ श्रम करवाया जाता है । जबकि जेल मैनुअल में है कि बिचाराधीन बन्दीयो कोई काम न लिया जाये । इसका अनुपालन कत्तई नहीं किया जाता है । जेल बंदी ने जेल के अन्दर मिलने वाले खाने की चर्चा करते हुए बताया कि जेल के अन्दर दाल में पानी के बीच दाल का दाना नहीं नजर आता है । सब्जी जो सबसे सड़ी होती है बन्दीयो को परोसा जा रहा है । रोटी इतनी पतली की बन्दीयो का पेट ही नहीं भरता है । रोटी के साथ चावल नहीं दिया जाता है । इसके अलावा सबसे गंभीर समस्या यहाँ पर यह है कि जेल की क्षमता से चार गुना अधिक बन्दी जेल की बैरकों में ठूंस कर भरे गये है । जिसका परिणाम यह है कि बन्दी रात्रि को सोते समय करवट नहीं बदल सकता है ।
बन्दी रक्षकों की मार के डर से शिकायत नहीं करते जेल के अन्दर अपनी पीड़ा कहने वाले बन्दी को जेलर एवं बन्दी रक्षकों की लाठी का सामना करना पड़ता है । जब भी प्रशासनिक एवं पुलिस अथवा न्याय पालिका के शीर्ष अधिकारी जेल का निरीक्षण करने जाते हैं तो बन्दी जेलर एवं बन्दी रक्षकों की मार के डर से शिकायत करने का साहस नहीं करते है । इसीलिये अधिकारी सब कुछ आल इज वेल करके चले जाते हैं और सच से रूबरू नहीं होते हैं,
जेलों में माफिया राज जो है वह इसी सिस्टम की देन है और इसी सिस्टम से ही जेलों से अपराधी बाहरी दुनियां में अपराधिक संचालन करते और करवाते चले आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पुलिस उपरोक्त बातों को नहीं जानती । पुलिस सब जाने हुए भी चुप रहती है। जिसका खामियाजा समय समय पर जेलों में गंभीर घटनाओं का घटित होना आम बात हो गया है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या जेल से भ्रष्टाचार खत्म किया जा सकेगा । जेल में जेल मैनुअल का पालन हो सकेगा या जेल के जिम्मेदार अधिकारी भ्रष्टाचार में गोते लगाते रहेंगे ।