“सनातन उत्सवों की वैज्ञानिकता” विषय विशिष्ट व्याख्यान का हुआ आयोजन
“सनातन उत्सवों की वैज्ञानिकता” विषय विशिष्ट व्याख्यान का हुआ आयोजन
आज का विज्ञान केवल प्रत्यक्ष ज्ञान है, जिसका परीक्षण किया जा सकता है। किन्तु वैदिक विज्ञान में ज्योतिष समाहित : कृष्ण कुमार पाण्डेय
वाराणसी, शनिवार 20 फरवरी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के वेद विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान के 38 वें सोपान में मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध विद्वान् प्रो. कृष्ण कुमार पाण्डेय, अध्यक्ष प्राचीन भारतीय विज्ञान – मानव शास्त्र संकाय,कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, रामटेक, नागपुर (महाराष्ट्र) थे। उन्होंने “सनातन उत्सवों की वैज्ञानिकता” विषय पर अपना विचार श्रोताओं के सम्मुख रखा। प्रो.पाण्डेय ने बताया कि आज का विज्ञान केवल प्रत्यक्ष ज्ञान है, जिसका परीक्षण किया जा सकता है। किन्तु वैदिक विज्ञान में ज्योतिष समाहित है। जिसका आधार गणना है, वह निश्चित रूप से विज्ञान सम्मत है। सनातन उत्सव अवश्य ही विज्ञान सम्मत हैं क्योंकि जो हम नहीं जानते उसे यह नहीं कह सकते हैं कि वह असत्य है। सनातन का उद्देश्य जीवन का उत्कर्ष मात्र है । इसमें हमारे चारों पुरुषार्थ समाहित हो जाते हैं। हमारे उत्सव ही हमारे मनोविनोद के लिए ,आशावादी जीवन के लिए, सद्व्यवहार के लिए अत्यन्त आवश्यक है। व्याख्यान के क्रम में उन्होंने बताया कि हमारे पर्व और त्योहार अर्थात् तिथि और वार का प्रायः प्रयोग होता है किन्तु अपेक्षाकृत नक्षत्र आदि का प्रयोग कम किया जाता है। प्रोफेसर पाण्डेय ने इसी क्रम में कहा कि धार्मिकता मनुष्य मात्र को मनुष्य बनाती है, इससे परस्पर सद्भाव, प्रकृति के प्रति उत्तम विचार उत्पन्न होता है क्योंकि सभी पर्वों का उद्देश्य सर्वजन सुखाय और सर्वजन हिताय है । यही पर्व वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को चरितार्थ करने में सहायक हैं। शास्त्रों में सनातन परम्परा से चली आ रही है, ज्योतिष शास्त्र गणित शास्त्र कहा जाता है। हमारे पर्व अमुक दिन में, अमुक तिथि में क्यों होता है, इसका भी विशेष कारण है। व्याख्यान के क्रम में प्रोफेसर पाण्डेय ने बताया कि हम होली का त्यौहार सेवा के लिए, दीपावली का त्यौहार धन की वृद्धि के लिए और विजयादशमी का त्यौहार विजय प्राप्ति के लिए, श्रावणी का त्यौहार आध्यात्मिकता को बढ़ाने के लिए मनाते हैं क्योंकि हमारे यहां पर्व एवं उत्सवों का बहुत महत्व है। उन्होंने यह भी बताया कि चार धाम की यात्रा-पूर्व में जगन्नाथ धाम वानप्रस्थी के लिए तथा आध्यात्मिक कामनाओं की प्राप्ति के लिए होता है। इसी प्रकार पश्चिम में गृहस्थ के लिए, उत्तर में बद्रीनाथ धाम और दक्षिण में रामेश्वरम मोक्ष के लिए निर्धारित है।साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि चार पर्व अर्थात् महाकुंभ के लगने का आधार खगोलीय है, क्योंकि महाकुंभ नासिक में सूर्य चंद्र और गुरु के एक राशि में आने पर होता है ।जिसमें सूर्य अग्नि तत्व, चंद्रमा मन तत्व और गुरु जीवन तत्व के रूप में होता है। इसी प्रकार दूसरा पर्व या महाकुंभ हरिद्वार में, तीसरा प्रयाग में और चौथा उज्जैन में होता है। व्याख्यान की अध्यक्षता कुलपति आचार्य राजाराम शुक्ल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन एवं संयोजन केन्द्र के निदेशक प्रो. महेन्द्र पाण्डेय, मंगलाचरण एवं स्वागत डॉ.मधुसूदन मिश्र और सह संयोजन व संचालन डॉ. सत्येन्द्र कुमार यादव ने किया। उस दौरान प्रो. सुधाकर मिश्र, प्रो.रामपूजन पाण्डेय, प्रो.हरिप्रसाद अधिकारी, प्रो.रमेश प्रसाद, प्रो.अमित शुक्ल, प्रो. ब्रजभूषण ओझा, डॉ.शरद नागर, डॉ.विजय शर्मा, डॉ. राजा पाठक, डॉ.कुंजबिहारी सहित सभी आचार्य एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।