दो अंकों में सिमट चुकी है कुष्ठ रोगियों की संख्या
दो अंकों में सिमट चुकी है कुष्ठ रोगियों की संख्या
• घर-घर खोजने पर मिले सिर्फ 26 नये कुष्ठ रोगी
• जिले में नये-पुराने कुष्ठ रोगियों की कुल संख्या महज 79
वाराणसी, 29 जनवरी 2022 – जिले में कुष्ठ रोगियों की संख्या दो अंकों में सिमट चुकी है। कुष्ठ रोगियों को घर-घर खोजने के लिए पूरे देश भर चले अभियान में भी महज 26 नये कुष्ठ रोगी मिले हैं। नये और पुराने कुष्ठ रोगियों की संख्या भी अब सिर्फ 79 रह गयी है। इसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए समय पर इलाज कराना जरूरी है। कुष्ठ रोग के उन्मूलन एवं रोगियों से भेदभाव को समाप्त करने के लिए हर साल कुष्ठ रोकथाम दिवस राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (30 जनवरी) पर मनाया जाता है। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. राहुल सिंह ने बताया कि वर्ष 2016-17 में जिले में कुष्ठ रोगियों की संख्या 303 थी। वर्ष 2017-18 में यह घटकर 226 हो गयी। वर्ष 2018-19 में 133 और वर्ष 2019-20 में 128 कुष्ठ रहे। वर्ष 2020-21 में यह संख्या सिमट कर महज 79 हो गयी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2021 में अप्रैल से दिसंबर तक चले इस अभियान में 26 नये कुष्ठ रोगी मिले। इसमें विद्यापीठ ब्लाक में सात, चिरईगांव में चार, आराजी लाइन में तीन, सेवापुरी में पांच, हरहुआ में एक बड़ागांव में तीन, पिण्डरा में दो और शहरी क्षेत्र में एक नया कुष्ठ रोगी मिला। चोलापुर ब्लाक में एक भी नया कुष्ठ रोगी नहीं पाया गया। बताते हैं कि कभी कुष्ठ को लाइलाज रोग माना जाता था। इसके रोगियों को लोग अछूत मानते हुए उनसे दूरी बना लेते थे। यहां तक कि कुष्ठ रोगियों को घर-परिवार से दूर कर उन्हें असहाय हालत में छोड़ दिया जाता था। इस गंभीर समस्या को देखते हुए ही सरकार ने इस रोग के खिलाफ अभियान चलाया। नतीजा रहा कि वर्ष 2005 में कुष्ठ रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया गया, लेकिन सरकार ने इस रोग से अपनी लड़ाई निरंतर जारी रखी। कुष्ठ के रोकथाम व नियंत्रण के लिए सरकार ने इसके रोगियों को खोजने के लिए अभियान शुरू किया। घर-घर कुष्ठ रोगियों को खोजने के लिए 86 टीमों ने जिले में सभी ऐसे क्षेत्रों में सर्वे शुरू किया गया । जहां इस रोग के मरीजों के पाये जाने की संभावना थी।
शून्य हुआ बाल एवं दिव्यांग कुष्ठ रोगियों का प्रतिशत- कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम में जिले को महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है। वर्ष 2013-14 में बाल कुष्ठ रोगियों का प्रतिशत 4.17 था जो अब 2020-21 में शून्य हो चुका है । इसी तरह वर्ष 2013-14 में दिव्यांग कुष्ठ रोगियों का प्रतिशत 3.30 था, यह भी अब शून्य हो चला है। मतलब साफ है की नये कुष्ठ रोगियों में बाल एवं दिव्यांग कुष्ठ रोगी शून्य है।
कुष्ठ रोगियों को मिलती है आर्थिक सहायता – जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डा. राहुल सिंह ने बताया कि द्वियांग कुष्ठ रोगियों को भरण-पोषण के लिए सरकार की ओर से हर माह 25 सौ रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। दिव्यांग कुष्ठ रोगियों को यह सहायता आजीवन प्रदान की जाती है। जिले में 128 द्वियांग कुष्ठ रोगियों को यह सहायता प्रदान की जाती है।
क्या है कुष्ठ रोग – जिला कुष्ठ रोग अधिकारी बताते हैं कि अन्य रोगों की तरह कुष्ठ रोग भी एक प्रकार के सुक्ष्म कीटाणु से होता है। इसके रोगी की त्वचा पर हल्के पीले, लाल अथवा तांबे के रंग के धब्बे हो जाते है। इसके साथ ही उस स्थान पर सुन्नपन होना, बाल का न होना, हाथ-पैर में झनझनाहट आदि कुष्ठ रोग के लक्षण हो सकते हैं।
होती है मुफ्त जांच व उपचार – डॉ. राहुल सिंह कहते हैं कि कुष्ठ रोग अब असाध्य नहीं रहा। इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं। प्रारम्भिक अवस्था में उपचार से ही इसके रोगी ठीक हो जाते है और उनमें दिव्यांगता नहीं हो पाती। वह बताते हैं कि सभी सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों में इसके जांच व उपचार की मुफ्त व्यवस्था है। इसके उपचार में यदि कहीं किसी को दिक्कत आ रही हों तो वह उनसे सीधे भी सम्पर्क कर सकता है। उन्होने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय के कमरा नम्बर- 321 में प्रत्येक कार्यदिवस प्रातः 10 बजे से दोपहर दो बजे तक निःशुल्क ओपीडी की जाती है।
कुष्ठ रोग को हराने में इस तरह रोल मॉडल बना काशी
कुष्ठ रोग को हराने में काशी रोल मॉडल बन चुका है। जिला कुष्ठ रोग अधिकारी राहुल सिंह बताते हैं कि सरकार ने वर्ष 2016 में कुष्ठ रोगियों को खोजने के लिए अभियान शुरू किया था। उस समय सर्वे के दौरान चिरर्इगांव-कमौली के 42 घरों वाले पुरवे में 27 नये रोगी मिले। एक ही स्थान पर इतनी बड़ी संख्या में कुष्ठ रोगियों का मिलना एक चुनौती भी थी। तब हमने कुष्ठ रोगियों का उपचार शुरू करने के साथ ही एक नया प्रयोग भी किया। रोगी को कुष्ठ रोग की दवा खिलाने के साथ ही उसके परिवार और आस-पास के घरों में तपेदिक (टीबी) के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवा की सिंगल खुराक दी। इसके सार्थक परिणाम आये। परिवार और पड़ोसियों का भी संक्रमित होना बंद हो गया। इस प्रयोग को पूरे जिले में उन सभी जगहों पर किया गया जहां-जहां सर्वे के दौरान कुष्ठ रोगियों का पता चलता था। नतीजा हुआ कि कुष्ठ रोग का संक्रमण पूरी तरह रुक गया। डा. राहुल सिंह बताते हैं कि काशी में हुए इस नव प्रयोग की प्रदेश भर में जमकर सराहना हुर्इ और और उप महानिदेशक (कुष्ठ) डा. अनिल कुमार ने अक्टूबर 2018 में इसे पूरे प्रदेश में लागू करने का निर्देश दिया। अब बनारस ही नहीं पूरे प्रदेश में कुष्ठ के संक्रमण को रोकने के लिए इस मॉडल पर काम चल रहा है।