अत्यंत जटिल व मुश्किल चिकित्सकीय प्रक्रिया के बाद बचाई गई 35 वर्षीय महिला की जान
चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, ने एक बार फिर सिद्ध की अपनी चिकित्सकीय विशेषज्ञता एवं निपुणता
अत्यंत जटिल व मुश्किल चिकित्सकीय प्रक्रिया के बाद बचाई गई 35 वर्षीय महिला की जान
हृदय की गंभीर बीमारी से पीड़ित महिला की एंजियोप्लास्टी करना था बेहद चुनौतीपूर्ण
हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रो. ओमशंकर के नेतृत्व वाली टीम के प्रयासों से बची महिला की जान
वाराणसी। स्वस्थ हृदय, स्वस्थ जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित हृदय रोग विभाग के विशेषज्ञ एवं चिकित्सक आमजन को स्वस्थ हृदय एवं स्वस्थ जीवन के ध्येय को पूर्ण करने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। इसी क्रम में विश्विद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के कार्डियोलॉजी विभाग में एक जटिल एवं मुश्किल प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम देकर एक मरीज़ की जान बचाई गई एवं एक बार फिर संस्थान की गुणवत्ता एवं विशेषज्ञता का लोहा मनवा कर विश्वविद्यालय की ख्याति और प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाया गया। दरअस्ल दिनांक 28.01.2022 को कार्डियोलॉजी विभाग में 35 वर्षीय एक महिला रोगी को लाया गया, जो कुछ कदम भी बिना सीना और दोनों हाथों में अस्हाय दर्द के नहीं चल पा रही थी। ये सभी लक्षण महिला में गंभीर हृदय रोग की तरफ इशारा कर रहे थे। महिला कि किसी निजी अस्पताल में इसी वजह से एंजियोग्राफी जांच की गई थी, जिसमें अति गंभीर बीमारी पाई गई थी, जिनका इलाज उनके लिए वहां कर पाना मुश्किल था, अतः मरीज़ सर सुन्दरलाल चिकित्सालय में हृदय रोग विभाग आईं। हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रो. ओम शंकर ने बताया कि इस मामले में यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि 35 वर्षीय यह महिला न तो तंबाकू का सेवन करती है, न ही मधुमेह से पीड़ित है, न ही उनके परिवार के किसी सदस्य को हृदय के इस तरह की गंभीर बीमारी की कोई दिक्कत है और न ही उनके खून की नलियों में सूजन होने की कोई वजह दिख रही थी। चिकित्सकों के लिए यह काफी आश्चर्यजनक था। एंजियोग्राफी जांच में उनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जहां से शुरू होती है, वही बिल्कुल चिपककर धागे जैसी हो गई दिख रही थी (पहले चित्र में लाल तीर से दर्शाई गई स्थिति)। इस तरह की हृदय की बीमारी को सबसे गंभीर माना जाता है। ऐसे कई मामले अकसर सामने आते हैं कि इस दशा का सामना करने वाले लोग अचानक चलते-फिरते ही हृदय आघात से असमय मौत के शिकार हो जाते हैं।
इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इसके दो ही इलाज संभव थे-
1. या तो मरीज़ की ओपन हार्ट (बाईपास) सर्जरी की जाए, जो उम्र के हिसाब, अस्पताल में भर्ती रहने के दिनों, खर्च के हिसाब और खतरे के हिसाब से काफी महँगी पड़ती है या
2. मरीज़ के बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जो 95% के आसपास सिकुड़ी हुई थी उसे हाथ/पैरों के नसों में सुई डालकर फुला दिया जाए और उसमें छल्ले/स्टेंट डाल दिये जाए, जिसे एंजियोप्लास्टी कहा जाता है, जिसके 1-2 दिन बाद ही मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाते हैं, वो भी बिना किसी चीर-फाड़ के। इस पूरी प्रक्रिया में ख़र्च भी तकरीबन 50 हज़ार रुपये का ही आता है।गहन विचार-विमर्श के बाद मरीज़ की एंजियोप्लास्टी करने का निर्णय लिया गया, जो वाकई चुनौतीपूर्ण कार्य था। उनके हृदय की नस की स्थिति ऐसी थी कि उसमें पहले तो एंजियोप्लास्टी में उपयोग करने के लिए डाली जानेवाली तार और बैलून डालना ही काफी मुश्किल हो रहा था। फिर नसों की स्थिति ऐसी थी कि छल्ला डालने के बाद उसको कहाँ रखा जाए, यह निर्धारित करना भी काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इस प्रक्रिया में हुई थोड़ी सी भी चूक मरीज की जान ले सकती है। लेकिन तमाम चुनौतियों को मात देते हुए अपनी विशेषज्ञता, अनुभव, निपुणता व चिकित्सकीय कौशल के बल पर हृदय रोग के विभागाध्यक्ष प्रो. ओमशंकर के नेतृत्व वाली टीम ने एक जटिल व चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया के बाद सफलतापूर्वक मरीज की एंजियोप्लास्टी की, जिससे उनकी जान बच सकी। सर्जरी के बाद धागे जैसी दिखनेवाली नसें, अब सामान्य नसों सी हैं और काम कर रहीं हैं (दूसरी तस्वीर, लाल तीर के निशान को देखें और पहली तस्वीर से उसकी तुलना करें)।