विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड19 को महामारी घोषित करने से पहले ही सीएसआईआर ने शुरू कर दिया था अपना कार्यः सीएसआईआर महानिदेशक
पद्म विभूषण डॉ. शांति स्वरूप भटनागर जी की 127वीं जयंती पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने किया उनके जीवन व योगदान को याद
शेखर मांडेः कोविड-19 आखिरी महामारी नहीं है, सीएसआईआर भविष्य की प्राथमिकताओं पर कर रहा है मंथन
शेखर मांडेः महामारी के काल में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ने की उद्योग जगत के साथ साझेदारी, उपलब्ध कराए समस्याओं के समाधान
कुलपति, बीएचयूः डॉ. शांति स्वरूप भटनागर के योगदान से मिला स्वतंत्र भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ढांचे को आकार
वाराणसी, रविवार 21 फरवरी। पद्म विभूषण डॉ. शांति स्वरूप भटनागर की 127 वीं जयंती पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने आज महान वैज्ञानिक के जीवन व योगदान को याद किया। इस अवसर पर विज्ञान संस्थान के रसायन शास्त्र विभाग द्वारा रसायन शास्त्र इकाई, महिला महाविद्यालय एवं रसायन शास्त्र विभाग, आईआईटी, बीएचयू, तथा विज्ञान भारती के साथ मिलकर एस. एस. जोशी सभागार में “भारत के औद्यगिक विकास में रसायन शास्त्र की भूमिका” विषय पर एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे ने कहा कि डॉ. शांति स्वरूप भटनागर ने होमी भाभा, विक्रम साराभाई एवं अन्य महान वैज्ञानिकों के साथ मिलकर ये सुनिश्चित किया कि विज्ञान औऱ प्रौद्योगिकी, भारत के विकास के वाहक बनें। उन्होंने कहा कि शांति स्वरूप भटनागर जी का विचार था कि उद्योगों का मज़बूत वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी आधार होना चाहिए और वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर), जो इस दिशा में शानदार कार्य कर रहा है, इसी विचार को मूर्त रूप दे रहा है। डॉ. मांडे ने कहा कि कोविड19 महामारी के दौर में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् ने उद्योग जगत के साथ साझेदारी कर कई महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान उपलब्ध कराए।
उन्होंने कहा कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड19 को महामारी घोषित भी नहीं किया था उससे पहले से ही सीएसआईआर अपने कार्य में जुट गया था क्योंकि परिषद् को स्थिति की गंभीरता एवं आने वाली चुनौतियों का अंदाज़ा हो गया था। उन्होंने कहा कि कोविड-19 अंतिम महामारी नहीं है, ऐसे में सीएसआईआर भविष्य की चुनौतियों एवं प्राथमिकताओं पर मंथन में जुटा है। उन्होंने कहा कि जब देश महामारी से जंग लड़ रहा था तब सीएसआईआर ने फैवीपीराविर दवा समेत विभिन्न पहलें कीं। ड़ॉ. मांडे ने कहा कि सीएसआईआर भविष्य में Centre of Excellence in Carbon Capture, Utilisation and Storage, हाईड्रोजन उत्पादन, प्रयोग एवं भण्डारण के संबंध में प्रयासों एवं देश के अन्य शैक्षणिक संस्थानों एवं उद्योग जगत के साथ साझेदारियों के बारे में व्यापक योजना पर काम कर रहा है।
कुलपति प्रो. राकेश भटनागर ने कहा कि वर्ष 2021 में डॉ. शांति स्वरूप भटनागर के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़ने के 100 वर्ष पूरे हो गए हैं। उन्होंने कहा कि महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित ये विश्वविद्यालय अनेक महान विभूमितों की कर्मभूमि रहा है और डॉ. शांति स्वरूप भटनागर का बीएचयू से जुड़ा होना इस सुनहरी विरासत को और समृद्ध बनाता है। कुलपति महोदय ने कहा कि डॉ एस. एस. भटनागर के योगदान से स्वतंत्र भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ढांचे व नीति को ये आकार व प्रगति मिली। उन्होंने कहा कि ये डॉ. शांति स्वरूप भटनागर जैसे महान वैज्ञानिकों का ही योगदान है कि आज भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने इतनी शानदार प्रगति की है। उन्होंने कहा कि इस वेबिनार से संकाय सदस्यों, शोधार्थियों, युवाओं व शिक्षाविदों को लाभ पंहुचेगा क्योंकि इस से न सिर्फ नई प्रतिभाओं व विशेषज्ञों को नए शोध एवं अनुसंधान पर विचारों के आदान प्रदान के लिए मंच मिलेगा बल्कि संभावित शोध के क्षेत्रों पर भी चर्चा व मंथन हो सकेगा।
सांगानेरिया फाउंडेशन के श्री संत सांगानेरिया ने कहा कि उद्योग एवं शिक्षा जगत के बीच बेहतर तालमेल से न सिर्फ शानदार नतीजे प्राप्त हो सकते हैं बल्कि दोनों ही क्षेत्र पारस्परिक रूप से लाभान्वित भी होंगे, जिससे अंततः समाज व देश को लाभ होगा। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की पहल साथी, जिसका एक केन्द्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को भी बनाया गया है, की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इससे शैक्षिक समुदाय एवं उद्योग जगत के साथ काम करने व परस्पर सहयोग के नए रास्ते खुले हैं। उन्होंने स्वदेशी तकनीकों व नवोन्मेष पर और अधिक काम करने का आह्वान किया क्योंकि तभी माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। विज्ञान संस्थान के निदेशक, प्रो. अनिल के. त्रिपाठी ने कहा कि प्रो. शांति स्वरूप भटनागर ने अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में तो योगदान दिया ही बल्कि समाज व उद्योग जगत की समस्याओं के सरल समाधान भी मुहैया कराए। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि शांति स्वरूप भटनागर जी ने राष्ट्र निर्माण के महामना के विचार को आगे बढ़ाया। जैसे महामना ने राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की जहां शिक्षा के साथ साथ चरित्र निर्माण भी हो, वैसे ही प्रो. एस. एस. भटनागर ने प्रोयगशालाएं स्थापित कीं जहां समस्याओं के समाधान खोजे जाएं।
उन्होंने कहा कि शांति स्वरूप भटनागर जी का जीवन इस बात का सर्वोत्तम उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति भी सकारात्मक परिवर्तन लाकर पूरे राष्ट्र को लाभान्वित कर सकता है। उन्होंने कहा कि एस. एस. भटनागर जी द्वारा स्थापित सीएसआईआर ने महामारी के दौर में गंभीर समस्याओं पर समाधान मुहैया कराकर उल्लेखनीय नेतृत्व का परिचय दिया है। विज्ञान संकाय के संकाय प्रमुख प्रो. मल्लिकार्जुन जोशी ने कहा कि डॉ. शांति स्वरूप भटनागर ने विज्ञान के साथ साथ थियेटर को भी अपनाया। इससे वे ऐसी सोच विकसित कर पाए जो आमतौर पर दूसरे नहीं रख पाते। प्रो. जोशी ने कहा कि ये बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में ही बंधे न रह जाएं क्योंकि ऐसा करने से हमारी सोच का दायरा बहुत सीमित हो जाता है। उन्होंने कहा कि डॉ शांति स्वरूप भटनागर का ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व था जिनका योगदान सिर्फ उनके क्षेत्र तक ही बंधा नहीं था। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय जी एवं डॉ. शांति स्वरूप भटनागर ने जो बुनियाद रखी उस पर आज भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सशक्त एवं ऊंची इमारत खड़ी है। रसायन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रो. डी. एस. पांडे ने स्वागत भाषण में कहा कि प्रो. शांति स्वरूप भटनागर, जो सीएसआईआर ने संस्थापक निदेशक थे, ने स्वतंत्र भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की दशा और दिशा तय की। उन्होंने कहा कि प्रो. शांति स्वरूप भटनागर की एक उत्तम कृति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत के रूप में हम सब के समक्ष है, जो महामना की बगिया की विशेषता एवं विविधता की बेजोड़ एवं बेमिसाल वर्णन है। प्रो. पांडे ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य शैक्षणिक संस्थानों एवं उद्योग जगत के मध्य कुशल तालमेल व साझेदारी से ही संभव हो सकता है। इस अवसर पर प्रो. बच्चा सिंह, प्रो. गणेश पांडे, प्रो. जे. एस. यादव, श्री. जयंत सहस्रबुद्धे, प्रो. आर. के. मिश्रा, डॉ. वी. रामानाथन, डॉ. दिव्या कुशवाहा, संकाय सदस्य, पुरा छात्र, छात्र व अतिथि उपस्थित थे। अनेक शिक्षक, छात्र एवं पुरा छात्र ऑनलाइन लिंक के माध्यम से भी जुड़े।